Monday, August 25, 2008

कॉर्पोरेट नागरिकता जिंदाबाद!

विलासराव देशमुख हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है बल्कि अच्छा है कि सेहत दुरुस्त रहे। क्या पता, ६३ साल की उम्र में भी नौजवानों की तरह चमकते दमकते रहने के पीछे एक बड़ा कारण ये भी हो। उनकी मुस्कुराहट कुछ इंच और बढ़ गयी है, जबसे सुना है कि रतन टाटा सिंगूर से अपनी नैनो प्रोजेक्ट को हटाने की चेतावनी दे चुके हैं। लगे हाथ महाराष्ट्र के महापराक्रमी मुख्यमंत्री ने कह दिया कि आइए टाटा, हम करते हैं आपका स्वागत। हम आपको देंगे जमीन। जरूर दीजिए जमीन लेकिन कीमत क्या होगी? करोड़ों का वारा न्यारा या फिर किसानों की मुसीबत? क्या ऐसा नहीं होगा कि सिंगूर के किसानों का दर्द अब विदर्भ के किसानों में गुणात्मक बढोत्तरी के साथ उभकर सामने आएगा?
आखिर महाराष्ट्र के विदर्भ में जमीन बिक रही है। किसानों की हालत खराब है और चिदंबरम साहब का ६० हजार करोड़ का महादान भी उनकी गाड़ी को पटरी पर ला नहीं पा रहा है। ऐसी खबर बार बार आती है कि नागपुर से अकोला के बीच कर्ज के मारे किसाने अपनी जमीन औने पौने दामों पर बेचने को तैयार हैं। वहां आलम ये है कि दस फीसदी लोग भी ऐसे नहीं हैं, जिन्हें भर पेट पौष्टिक भोजन मिलता हो। कमोबेश सभी परिवार कर्ज से दबे हैं और इसे सिर्फ कहावत मत समझिएगा बल्कि कड़वी सच्चाई है कि नमक रोटी पर उनका गुजारा चलता है और वो भी भर पेट नहीं मिलता। रोजगार गारंटी योजना को लेकर कांग्रेसी चारणवृंद जब तब राहुल गांधी की जयजयकार करते हैं और खुद कांग्रेस के युगपुरुष राहुल जी महाराज संसद में शशिकला और कलावती के बहाने विदर्भ और किसानों पर घड़ियाली आंसू बहा चुके हैं। बावजुद इसके विदर्भ के ज्यादातर इलाकों में रोजगार गांरटी योजना शुरु नहीं हो पायी है। अब ऐसे में जमीन बेचकर किसान से खेतिहर मजदूर और फिर मजदूर होते हुए भिखारी बनने या फिर खुदकुशी करने के अलावा उन किसानों की नियति में और क्या हो सकता है। लेकिन उन किसानों की वेदना से खुद को जोड़ने की सच्चे मन से किसी राजनेता ने क्या कोशिश की? करीब चार साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान देशमुख ने ही कहां कुछ सोचा। टाटा के लिए जाजम की तरह बिछने को बेताब मुख्यमंत्री बखूबी जानते हैं कि पैसा तो धनपशुओं से मिलेगा और आज राजनीति की सार्वभौमिक सच्चाई बन गया है अनाप शनाप पैसा।
हालांकि बुद्धदेव भट्टाचार्य जिस तरह टाटा को मनाने में लगे हैं, उससे लगता नहीं कि सिंगूर की नैनो महाराष्ट्र में सजने संवरने जा पाएगी। लेकिन देशमुख जी, घबराने की बात नहीं है। कोई दूसरा टाटा किसानों की जमीन खरीदने आ जाएगा और आप की सरकार करेगी बिचौलिये का काम। किसान गए भाड़ में, कॉर्पोरेट नागरिकता जिंदाबाद!

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