Monday, July 28, 2008

कलावती के बहाने देखो स्वार्थ साधने की कला

कांग्रेस महासचिव और सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी के लोकसभा में दिये भाषण की इतनी चर्चा और प्रशंसा हो रही है कि कहिए मत। जिसे देखिए वही ३८ साल के इस कांग्रेस सांसद के भाषण की संजीदगी पर कुर्बान हुए जा रहा है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। वह देश के सबसे मजबूत राजनीतिक परिवार के वारिस हैं और कल की कांग्रेस की आशा और अरमान के इकलौते केंद्र बिंदु। वैसे भी जिस तरह संसद में बहस का स्तर गिरता जा रहा है और लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत असभ्यता का अखाड़ा बन गयी है, उसमें राहुल गांधी की शालीनता कुछ को लुभाएगी ही। जिन्हें लुभाया, वो शान बघारेंगे ही।
राहुल ने कलावती की चर्चा संसद में छेड़ी। राहुल उस गरीब विधवा का नाम नहीं लेते तो कलावती को कोई जानता भी नहीं। लेकिन उसका नाम लेकर राहुल ने उन्हें लाइमलाइट में ला दिया। विदर्भ की रहने वाली कलावती देश के करोड़ो अभागे किसानों में से एक है और उसकी जिंदगी की कुल जमा पूंजी और उपलब्धि बस इतनी है कि राहुल गांधी उसके दर पर पहुंच गये। राहुल ने कलावती का हाल चाल पूछा। उन्हें पता चला कि कलावती के पति ने पचास हजार रुपये कर्ज लिये थे और उसे चुकाने में अक्षमता की वजह से उसने खुदकुशी कर ली थी। कलावती का पति तो दुनिया छोड़ गया लेकिन कर्ज सूद समेत अब ८५ हजार रुपये तक पहुंच गया है। कलावती किसान से खेतिहर मजदूर बन गयी है और कल उसके चार बच्चों का क्या होगा, वो नहीं जानती। हारे को हरिनाम जैसी कहावत कलावतियों के लिए ही होती है।
अब राहुल गांधी ने कलावती के लिए क्या किया? एक अखबार ने संसद में राहुल के भाषण के दूसरे दिन छापा कि राहुल कलावती के घर गये, उसे देखा और कुछ नहीं किया। आखिर पूरे देश की चिंता में गलने वाले कांग्रेस के युवराज अब एक महिला के लिए क्या करें। लेकिन तमाम कलावतियों की दुर्दशा दूर करने का रास्ता उन्हें जरूर मिल गया। धन्य हैं वामपंथी जो उन्होंने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर संसद में चर्चा हुई और राहुल गांधी को बोलने का मौका मिला और पूरे देश ने उन्हें सुना। राहुल ने कांग्रेसी सांसद नहीं बल्कि एक भारतीय (क्या दूसरे सांसद भारतीय नहीं हैं?) बनकर बताया कि अमेरिका से परमाणु संधि होगी तो देश में बिजली का नया करंट दौड़ेगा और वहीं करंट गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का रामवाण इलाज होगा। इसके लिए उन्होंने अपने सज्जन और ईमानदार प्रधानमंत्री का धन्यवाद ज्ञापन भी किया।
लेकिन सवाल है कि क्या अमेरिका से परमाणु संधि में कोई दैवीय शक्ति है कि वो गरीबी को छू मंतर कर देगा। अगर परमाणु बिजली इतना महत्वपूर्ण है तो अमेरिका ने १९७८ के बाद अपने यहां एक भी परमाणु बिजली घर क्यों नहीं स्थापित किया? फिर अमेरिका में ही कितना परमाणु बिजली का इस्तेमाल होता है, इसको लेकर थोड़ा बहुत मतभेद हो सकता है लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां भी परमाणु उर्जा से तीन से चार फीसदी ही बिजली उत्पन्न होती है। दरअसल परमाणु बिजली के लिए यूरेनियम चाहिए और युरेनियम का भाव इन दिनों ३०० डॉलर प्रति किलोग्राम है। इस हिसाब से देखिए तो परमाणु बिजली कितनी महंगी पड़ेगी और कितने लोगों के घरों में उजाला करेगी। उस पर से पर्यावरण का जो हाल होगा, वो रोना तो अलग से रोया जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और दूसरे यूरोपीय देश अपने यहां परमाणु बिजली के नए केंद्र लगाना क्यों बंद करते?
लेकिन परमाणु संधि पर फिर भी ईमानदारी का पुतला बने मनमोहन सिंह उतारु हैं और राहुल गांधी उसे गरीबी निवारण का एक मात्र उपाय मानते हैं। इसके कारण की तरफ वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने सही इशारा किया है। प्रभाष जी ने लिखा है कि अमेरिका के साथ कमीशनखोरी का मामला दस से बीस फीसदी तक जाता है। ऐसे में अगर परमाणु उर्जा संधि के क्षेत्र में सत्रह लाख करोड़ रुपये का निवेश होता है तो दस फीसदी के लिहाज से भी एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये का कमीशन मिल जाएगा। ये कमीशन भारत में किसे मिलेगा, नहीं मालूम। लेकिन सोचिए, अगर एबी बर्धन के आरोपों को ही सही मानकर चलें तो एक सांसद को खरीदने में पचीस करोड़ के लिहाज से बीस सांसदों को मैनेज करने में कुल पांच सौ करोड़ रुपये हुए। अब एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये में से हजार पांच सौ करोड़ चला ही जाए तो क्या फर्क पड़ता है। ईमानदार मनमोहन सिंह, त्याग की देवी सोनिया गांधी और समाजवाद का नाम रोशन कर रहे मुलायम सिंह और अमर सिंह तो धन्य हो ही जाएंगे। किसकी किस्मत में क्या बदा है, ये तो वही जाने।
बात फिर राहुल गांधी पर आती है। जिस विदर्भ में कलावती की पीड़ा का विधवा प्रलाप वो संसद में कर रहे थे, उसी विदर्भ में सबसे बडे साहुकारों में गिनती होती है एक कांग्रेसी विधायक दिलीप सानंदा की। कहते हैं कि सानंदा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के नाक के बाल हैं और कर्ज वसूली के नाम पर मृत किसानों का खून पीकर सानंद जी रहे हैं। ये बात विदर्भ का बच्चा बच्चा जानता है लेकिन दुर्भाग्य है कि कांग्रेस का लाडला बच्चा ही नहीं जानता। जाहिर है कि राहुल गांधी को पूरी बात की जानकारी नहीं है या फिर एक घाघ नेता की तरह वो भी अपने खुंखार विधायक और किसानों की मौत के सौदागर नेताओं को बचाना चाहते हैं। दोनो में बात चाहे जो सच हो, वो निर्मम घात करने वाली है। अब कलावती जिए या मरे, संसद में उसके नाम का मंत्रोच्चार करके राहुल बाबा ने तो अपना सद्धर्म निभा दिया। कांग्रेस गदगद हुई, सोनिया मुदित हुईं, पढ़े लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वालों ने जयजयकार किया, लेकिन जिस कलावती का नाम बेचा गया, वो बेचारी चालीस रुपये की मजूरी के लिए दर दर भटक रही होगी।

1 comment:

Nitish Raj said...

U too 'Brutus'. That i dont know, u should told me sir...nice post